Wednesday, 28 January 2015

माॅ

माॅ
क्या तुझको करूँ मैं अर्पण
ये जर्रा जर्रा कतरा कतार है तेरा

मेरे दिन में तू
मेरी रात में तू
मेरे हर साँस में तू
मेरी हर बात में तू

मेरी आवाज में तू
मेरी जज्बात में तू
तू ही मेरे सपनों में
मेरे हर खय्लात में तू

तेरा ही अंश ही मेरी काया है
तेरा ही रूप दर्पण बनकर मुझमें उभर आया है
उभर आयीं हैं तेरी पलकें मेरी आँखों में
मेरी हर साँस ने तेरा ही गीत गाया है

माॅ क्या तुझको करूँ मै अर्पण।।
ये जर्रा जर्रा कतरा कतरा है तेरा।।।।

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