साहिल पे बैठ कर
लहरों का नजारा करते रहे
ईक नजर ग्वारा ना थी उनको
हम उम्र ग्वारा करते रहे
हम दिल से होकर मजबूर
उनकी यादों का सहारा करते रहे
हाय ईक पल ना समझे वो हमको
मेरी आहों से किनारा करते
हम रेत के समदंर मे
ढूॅढते रहे उनके कदमों के निशां
वो गुलशन मे बैठकर
बहारों का नजारा करते रहे
कतरा कतरा जिस्म
पिघलता गया बेरूखी से उनके
जिए हैं जिंदगी इसकदर
की बस सांसो से गुजारा करते रहे।
साहिल पे बैठ कर
लहरों का नजारा करते रहे......
.
लहरों का नजारा करते रहे
ईक नजर ग्वारा ना थी उनको
हम उम्र ग्वारा करते रहे
हम दिल से होकर मजबूर
उनकी यादों का सहारा करते रहे
हाय ईक पल ना समझे वो हमको
मेरी आहों से किनारा करते
हम रेत के समदंर मे
ढूॅढते रहे उनके कदमों के निशां
वो गुलशन मे बैठकर
बहारों का नजारा करते रहे
कतरा कतरा जिस्म
पिघलता गया बेरूखी से उनके
जिए हैं जिंदगी इसकदर
की बस सांसो से गुजारा करते रहे।
साहिल पे बैठ कर
लहरों का नजारा करते रहे......
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Good one Mithilesh! Keep writing.
ReplyDeleteThanks amit keep reading and encouraging me...
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