Wednesday, 28 January 2015

माॅ

माॅ
क्या तुझको करूँ मैं अर्पण
ये जर्रा जर्रा कतरा कतार है तेरा

मेरे दिन में तू
मेरी रात में तू
मेरे हर साँस में तू
मेरी हर बात में तू

मेरी आवाज में तू
मेरी जज्बात में तू
तू ही मेरे सपनों में
मेरे हर खय्लात में तू

तेरा ही अंश ही मेरी काया है
तेरा ही रूप दर्पण बनकर मुझमें उभर आया है
उभर आयीं हैं तेरी पलकें मेरी आँखों में
मेरी हर साँस ने तेरा ही गीत गाया है

माॅ क्या तुझको करूँ मै अर्पण।।
ये जर्रा जर्रा कतरा कतरा है तेरा।।।।

Thursday, 22 January 2015

मेरी आहों से यूँ 
किनारा  ना कर 
मत छोड़ के जा 
मुझको बेसहारा ना कर 

इक नज़र ही काफी है उम्र भर के लिए 
तमाम उम्र तू अपनी गवारा ना कर 

अब जो दुरी है 
तो मुनासिब है की फासला बनाये रखो 
ख़्वाबों में आकर 
मुझको पुकारा ना कर 


मेरी आहों से यूँ 
किनारा ना कर। 

Sunday, 18 January 2015

दिल की बात

साहिल पे बैठ कर
लहरों का नजारा करते रहे
ईक नजर ग्वारा ना थी उनको
हम उम्र ग्वारा करते रहे

हम दिल से होकर मजबूर
उनकी यादों का सहारा करते रहे
हाय ईक पल ना समझे वो हमको
मेरी आहों से किनारा करते

हम  रेत के समदंर मे
ढूॅढते रहे उनके कदमों के निशां
वो गुलशन मे बैठकर
बहारों का नजारा करते रहे

कतरा कतरा जिस्म
पिघलता गया बेरूखी से उनके
जिए हैं जिंदगी इसकदर
की बस सांसो से गुजारा करते रहे।

साहिल पे बैठ कर
लहरों का नजारा करते रहे......
.



Sunday, 11 January 2015

तू जिंदा है अभी----मेरे पिता की याद में

लोग कहते हैं
कि तू जिंदा नहीं

तेरे हाथ मेरी उँगलियाँ बनकर
हरकत करतीं है अभी
तेरी साँसे मेरी
धडकनों मे जिंदा हैं अभी

फिर भी लोग कहते हैं
कि तू जिंदा नहीं

तेरे गाए हुए गीत गाता हूं मैं
तेरे बुने हुए सपने सजाता हूं मैं
तेरी मुस्कान मेरे होटों पर,  
बिखरतीं है अभी

फिर भी लोग कहते हैं
कि तू जिंदा नही
जाने क्यूँ लोग कहते हैं
कि तू जिंदा नही।।।।

Saturday, 10 January 2015

खुदा खैर करे

इक अजीब सी बू आती है
कुछ अध जली लाशों से , कछ अध जले मकानों से
खुदा खाली  ही कर दे ये दुनिया इन सियासतदानो से।

कुछ बच्चे तरसते हैं
मां की दुध क लिए
कोइ लडता नजर आता है
अपनी वजूद के लिए

कोई हिंदू है तो कोई मुसलमां है
कोई इंसा नहीं है यहाँ
ये जमीं मायूस है
कुछ अपने बेटों के कारनामो से

भाई से भाई को लडाते हैं
कभी हिंदू को मुस्लिम तो कभी मुस्लिम को हिंदू बनाते हैं
मौत ही मौत बेचते हैं
अपनी रगीं दुकानों से.

कभी थिरकती थी  ये बस्ती
मंदिर के घंटों से मसिजद् के अजानो से
बिस्मिला की शहनाई से
भीमसेन की तानो से

चारों तरफ अफरातफरी हे
उन्माद सा फैला है
सहमे सहमे से है सब कौम वाले
अपने अपने अकाओं के तुगलकी फरमानो से

खुदा बचाले ये दुनिया
इन सफेदपोश हैवानो से।।


Monday, 5 January 2015

Today I created my blog
with the help of my dearest friend
amit .It's like dream come true,now I can
write and share my views with other and
get their feedback.